त्रिवेणी और अर्थ : दूसरी किश्त

पिछली पोस्ट में मैंने पहली त्रिवेणी का अर्थ समझने-समझाने की कोशिश की। किसी भी तरह का सवाल पूछना हो, तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। मैं अपने फ़ेसबुक पेज पर लाइव भी आता रहूँगा ताकि आप सीधे-सीधे सवाल पूछ सकते हैं। फ़िलहाल, आज हम दूसरी त्रिवेणी का अर्थ समझेंगे। पेश है दूसरी किश्त-
त्रिवेणी-2
सख़्त ऊपर से मगर दिल से बहुत नाज़ुक हैं चोट लगती है मुझे और वो तड़प उठते हैं
हर पिता में ही कोई माँ भी छुपी होती है
भाव-
भारतीय समाज में इस तरह की अवधारणा रही है कि माँ, पिता से ज़ियादा भावुक होती हैं। लेकिन हम ये बात भूल जाते है कि चाहे हम सब एक औरत और एक मर्द दोनों से मिलकर बने होते हैं। तो फिर ये बात कैसे मुमकिन है कि हमारे भीतर सिर्फ़ एक ही तरह के गुण मौजूद हों। अस्ल में, नर्म होना ही स्त्री स्वभाव है और सख़्त होना पुरुष स्वभाव है। हम सब में स्त्री और पुरुष की प्रतिशतता होती है। ज़रूरी नहीं कि कोई व्यक्ति जो बायोलॉजिकली स्त्री है, वो स्वभाव से भी स्त्री हो। ये बात भी ज़रूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति अगर बायोलॉजिकली पुरुष है, तो उसका स्वभाव पुरुष जैसा ही हो। पुरुष में स्त्री का छुपा होना और स्त्री में पुरुष का ज़ाहिर होना बहुत ही आम बात है। बहुत ही नेचुरल है।
अर्थ-
ऊपर दी गई त्रिवेणी में कहा गया है कि ऊपर से सख़्त दिखने वाले पिता का दिल दरअस्ल बहुत नाज़ुक है। ठीक उसी तरह से जैसे नारियल का फल बाहर से सख़्त और अंदर से मुलायम होता है। पिता के नर्म-दिल होने का सबूत यही है कि जब कभी मुझे चोट लगती है, उन्हें दुख होता है। ऐसा अक्सर होता है। जब बच्चे को किसी भी तरह की परेशानी होती है, बच्चे के माँ-बाप को बहुत तकलीफ़ होती है। ये बात और है कि माँ-बाप अपने बच्चों के लिए फ़िक्र है उसे ज़ाहिर करें या नहीं। यहाँ बच्चे को चोट लगने पर पिता का तड़पना गवाही है उसके भीतर स्त्री की प्रतिशतता अधिक है। यानी वो बाहर से पिता है लेकिन ज़रूरत की घड़ी में माँ की भूमिका भी निभाता है। इसका दूसरा पहलू ये है कि हमारे समाज में सिंगल पैरेंट का कॉन्सेप्ट बढ़ता जा रहा है। हम इसे समय की माँग कहें समाज की ज़रूरत, सिंगल मदर या सिंगल फ़ादर होना रिश्तों में बढ़ रही दूरी का परिचायक भी है।
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