त्रिवेणी और अर्थ : छठी किश्त

पिछली पोस्ट में मैंने पाँचवी त्रिवेणी का अर्थ समझने-समझाने की कोशिश की। किसी भी तरह का सवाल पूछना हो, तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। मैं अपने फ़ेसबुक पेज पर लाइव भी आता रहूँगा ताकि आप सीधे-सीधे सवाल पूछ सकते हैं। फ़िलहाल, आज हम छठी त्रिवेणी का अर्थ समझेंगे। पेश है छ्ठी किश्त-
त्रिवेणी-6
चाहे कितना भी हो घनघोर अंधेरा छाया आस रखना कि किसी रोज़ उजाला होगा
रात की कोख ही से सुब्ह जनम लेती है
भाव-
हमने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि उम्मीद पर दुनिया क़ाएम है। आख़िर उम्मीद क्या है, जो हमें बड़े से बड़े संकट से निकाल ले जाती है। ये एक ऐसा सवाल है, जिसे किसी भी उम्र का इंसान ख़ुद से पूछे तो उसे एक ही जवाब मिलता है। दरअस्ल, उम्मीद एक ऐसी ऊर्जा है जो हमारे ही भीतर छुपी हुई होती है लेकिन उसे हम तब तक पा नहीं सकते जब तक उसके क़ाबिल न हो जाएँ। आज के समय में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो उम्मीद के भरोसे जी लेते हैं। वरना ज़ियादातर लोगों में उम्मीद को जज़्ब करने का सब्र नहीं होता। वजह ये भी हो सकती है कि समय जितनी तेज़ी से बदल रहा है, उतनी ही तेज़ी से लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए मोहब्बत कम होती जा रही है। किसी के दिए हुए वादे पर या किसी उम्मीद पर जीने के लिए हमारे दिल में बहुत मोहब्बत होनी चाहिए। मोहब्बत से भरा हुआ दिल ही रात की कोख से सुबह के जनम लेने तक का इंतज़ार कर सकता है।
अर्थ-
ऊपर दी गई त्रिवेणी में कहा गया है कि ज़िंदगी में चाहे कितनी भी परेशानी हो, इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि ये परेशानी भी एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगी। ज़िंदगी में अच्छा वक़्त भी ज़रूर आएगा। जिस तरह से पतझड़ के बाद बसंत आता है, उसी तरह से अगर ज़िंदगी में बहुत दुख हो, तो समझना चाहिए कि सुख आने ही वाला है। जैसे रात के बाद सुबह का आना तय है, उसी तरह से घनघोर निराशा के बाद आस का पल ज़रूर आता है। अंधेरे की कोख में उजाले का पलना, निराशा की कोख में आस का पलना एक चक्र है, जो हमेशा चलता रहता है। इन जज़्बात से गुज़रते हुए हमें इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि ये दुख हमारे भीतर बहुत कुछ बदल देता है। सुबह की उजली ख़ूबसूरती का आनंद उठाने के लिए अंधेरी रात के मातमी माहौल से गुज़रना ही पड़ता है। याद रहे, उजालों भरी सुबह देखने की हसरत को ख़ुद में ज़िंदा रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
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