त्रिवेणी और अर्थ : चौथी किश्त

पिछली पोस्ट में मैंने तीसरी त्रिवेणी का अर्थ समझने-समझाने की कोशिश की। किसी भी तरह का सवाल पूछना हो, तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। मैं अपने फ़ेसबुक पेज पर लाइव भी आता रहूँगा ताकि आप सीधे-सीधे सवाल पूछ सकते हैं। फ़िलहाल, आज हम चौथी त्रिवेणी का अर्थ समझेंगे। पेश है चौथी किश्त-
त्रिवेणी-4
उगते सूरज को सलामी तो सभी देते हैं डूबते वक़्त मगर उसको भुला मत देना
डूबना उगना तो नज़रों का महज़ धोखा है
भाव-
उगते हुए सूरज को सलाम करना एक मुहावरा है, जिसका मतलब है अगर आपके अच्छे दिन चल रहे हों, तो सब आपका साथ देते हैं। जब आपके बुरे दिन आते हैं, तो सब आपका साथ छोड़ देते हैं। जब कि सच्चाई ये है कि हर अच्छा वक़्त, बुरे वक़्त की ख़बर लिए आता है और हर बुरा वक़्त, अच्छे वक़्त का का बीज ख़ुद में छुपाए रहता है। हम बस देख नहीं पाते। जिस तरह से सूरज का उगना और डूबना ग़लत है। क्योंकि भाषा की कमी की वजह से हमें ऐसा कहना पड़ता है। अब ये बात मानी जा चुकी है कि सूरज हमेशा उगा ही रहता है। जिस समय भारत में सुबह होती है, दूनिया के किसी कोने में शाम हो रही होती है। ये सारी बातें सिर्फ़ ज़मीन के घूमने से जुड़ी हैं।
अर्थ-
ऊपर दी गई त्रिवेणी में कहा गया है कि सफलता और असफलता का कोई तय पैमाना नहीं है। हमारी नज़र में जो शख़्स बड़ा और अच्छा है, ज़रूरी नहीं कि वो पूरी दुनिया की नज़र में भी बड़ा और अच्छा है। क्यूँकि कोई भी शख़्स हर किसी पर नहीं खुलता। हम सब एक दूसरे को उम्र भर जानने-समझने की कोशिश करते हैं लेकिन पूरा-पूरा कभी नहीं जान पाते। हम सबके हालात कभी अच्छे, कभी कम अच्छे तो कभी बुरे होते हैं। अच्छा तो यही होगा कि हर परिस्थिति में एक दूसरे का साथ दें। ऐसा अक्सर होता है कि जो इंसान बाहर से जैसा दिखाई पड़ता है, वैसा अंदर से नहीं होता। कभी कभार एक पल ठहर कर सामने वाले का हाल जानना चाहिए कि क्या होंटों पर मुस्कुराहट रखने वाला आदमी अंदर से भी ख़ुश है। हो सकता है अपनी परेशानी बताने में हिचकिचा रहा हो। ऐसे उस इंसान को और ज़ियादा प्रेम और केयर की ज़रूरत करना चाहिए।
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